संध्या कैसे करे || संध्या वंदन कैसे करे || त्रिकाल संध्या || संध्या || प्रातः संध्या वंदन || sandhya vandan kese kare || sandhya vandan || GYANISTA ||

GYANISTA
1

संध्या वंदन के लाभ 

(1)  श्री राम, सीता देवी, बाली, भगवान कृष्ण, अर्जुन, कर्ण, चाणक्य: सभी ने पुराणों के अनुसार संध्या वंदनम किया है। वैदिक हिंदू धर्म की सच्ची भावना में, यह "लोक कल्याण": सार्वभौमिक कल्याण के लिए एक दैनिक प्रार्थना है। 

(2)  इस प्रकार, उत्साह के साथ संध्या वंदनम करने से न केवल व्यक्ति को ब्रह्म तेजस और आध्यात्मिक समृद्धि मिलती है बल्कि स्वस्थ जीवन भी मिलता है जिससे भौतिक समृद्धि प्राप्त होती है।

(3)  कई बच्चे एकाग्रता की समस्या से पीड़ित होते हैं। जैसे-जैसे वे उच्च कक्षाओं में पहुंचते हैं यह और भी अधिक प्रभावी हो जाता है। इसका कारण यह है कि उनके दिमाग में एक अवधारणा विकसित करने और अपना सारा ध्यान उस पर केंद्रित करने की क्षमता नहीं है। संध्यावंदनम के दौरान किए जाने वाले जप में हमेशा वह हिस्सा शामिल होता है जिसमें लड़के को अपने मन में देवता की कल्पना करनी होती है और उस पर लगातार ध्यान करना होता है। जब अच्छी तरह सिखाया जाता है, तो इससे एकाग्रता बढ़ती है।

(4)  संध्यावंदनम लगभग 8 वर्ष की आयु में शुरू किया जाना चाहिए। इससे छोटे बच्चे के मन में अनुशासन, भक्ति, धैर्य, स्थिरता आदि का संचार होता है क्योंकि उसका कोमल मन अभी भी विभिन्न क्लेशों से मुक्त होता है। इस उम्र में मासूमियत अभी भी कायम है और बच्चे का सही मार्गदर्शन करना और उसे एक उत्कृष्ट व्यक्ति बनाना महत्वपूर्ण है।

संध्या कैसे करे 🙏

 (1) 

          सबसे पहले बताए गए सामान को आपके सामने पाट्टे पर रख ले । कलश व पंचपात्र में पानी भर कर रख ले । फिर आसन पर बैठकर अपनी दाहिनी ओर से बांई ओर जल से भरा कलश ,पंचपात्र उसमें आचमनी व फिर तांबड़ी फिर अर्घा रखे । 

(संध्या के पात्र )


       (1)   सबसे पहले हाथ जोड़ कर गुरु जी का ध्यान करते हुए संध्या प्रारम्भ करे नीचे लिखा हुआ मंत्र बोले :- 

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वरः ।।
गुरुः साक्षात् परंब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।। 
    
  (2) उसके बाद बाएं हाथ से आचमनी को जल से भर कर दाहिने हाथ में आचमनी से 3 बार मंत्र बोल कर 3 बार आचमनी करनी है आचमनी करने का मतलब उस आचमनी से लिये हुए जल को अपने मुँह में लेना है । 

(1) ॐ केशवाय नमः ।
(2) ॐ नारायणाय नमः ।
(3) ॐ माधवाय नमः । 

इन तीनों मंत्रों से आचमनी कर लेवे । फिर एक बार आचमनी भर कर दाहिने हाथ को नीचे लिखे मंत्र को बोल कर हाथ धो लेवे । 
ॐ गोविन्दाय नमः ।।
 इस मंत्र से हाथ धो ले । 
 
(3) इसके बाद में आचमनी में जल भर कर नीचे लिखे विनियोग मंत्र को पढ़ कर तांबड़ी में जल को छोड़ देवे । आगे जब जब विनियोग आये तब हर जगह ऐसा ही करना है । 

ॐ अपवित्रः पवित्रोवेत्यस्य वामदेव ऋषि: विष्णुर्देवता , अनुष्टुप छंदः हृदि पवित्र करणे विनियोगः ।। 

इसके पश्चात आप नीचे लिखे मंत्र से आचमनी से बाएं हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से बीच की 2 अंगुलियों से 
शरीर पर उस जल को छिड़के । 

ॐ अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थां गतो£पिवा । 
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षम् स बाह्याभ्यंतरः शुचि ।। 

फिर नीचे लिखे मंत्र से विनियोग करे । 

ॐ पृथ्वीति मंत्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषि: सुतलं छंदः कुर्मो देवता आसन पवित्रकरणे विनियोग: ।।

फिर बांए हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की बीच की अंगुलियों से आसन पर नीचे लिखे मंत्र को बोलते हुए जल के छींटे देवे । 
ॐ पृथ्वि ! त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुणा धृता । 
त्वं च धारय मां देवि ! पवित्रं कुरुचासनं ।।

 (2)  

     🙏संकल्प 🙏

 पंचपात्र के जल में से आचमनी से दाहिने हाथ में जल चंदन पुष्प चावल आदि लेकर संकल्प करें फिर पूरा संकल्प बोलने के बाद में उस जल को तांबड़ी में छोड़ देवे । 

     ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद्भगवतो महा पुरुषस्य विष्णोराज्ञाया (विष्णुर् आज्ञा ) प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणो द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टा विंशतितमे कलियुगे कलि प्रथम चरणे श्रीमन् विक्रमादित्य राज्यात्त (अमुक की जगह यहां पर आपको वर्तमान का संवत 2077 या द्विसहस्त्रम् सप्त सप्तति: या प्रमादी ) 2077 संवतसरे ( अमुक वास जिस दिन संध्या कर रहे है उस दिन कौनसा सनातन मास चल रहा है उसका नाम जैसे वर्तमान में ज्येष्ठ मास तो आपको अमुक की जगह )  .........मास .......   ( अमुक की जगह कृष्ण या शुक्ल पक्ष ) .........पक्षे (अमुक तिथी की जगह जिस दिन आप संध्या कर रहे है उस दिन की तिथि का नाम ) ............तिथौ (अमुक वार की जगह उस दिन का वार ) ...........वासरे ( अमुक गौत्र आप जिस गौत्र में पैदा हुए है उसका नाम जैसे मेरा भारद्वाज गौत्र है तो उसका उच्चारण  ) ...............गौत्रोत्पन्न ...........नाम लेकर अपना   ब्राह्मण है तो शर्माहं / क्षत्रिय है तो वर्माहं / वैश्य है तो गुप्तो£हं  ममोपात्त दुरितक्षय द्वारा श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थं प्रातः ( मध्याह्न / सायं ) संध्योपासना कर्म करिष्ये ।।  

 उसके पश्चात आप आचमनी से दाहिने हाथ में जल लेकर या आचमनी में ही जल भर कर नीचे दिए गए विनियोग को तांबड़ी में छोड़ देवे । 

 👉भस्म धारण विनियोग👈

ॐ त्र्यम्बकमिति मंत्रस्य वशिष्ठ ऋषि:, रुद्रो देवता अनुष्टुप्छन्दः , भस्म धारणे विनियोग : । 

नीचे लिखे मंत्र को बोल कर यज्ञीय भस्म धारण करे । भस्म को ललाट पर फिर दोनों भुजाओं पर , दोनों मणिबंधों ( जहां हम घड़ी बांधते है उस स्थान ) लगाना चाहिए । 

🌹भस्म धारण का मंत्र🌹

 ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बंधनांमृत्योर्मुक्षीयमामृतात् । । 

इसके पश्चात शिखा बंधन का विनियोग आचमनी में जल भर कर या दाहिने हाथ में जल लेकर छोड़ देवे । 

🌹शिखाबन्धनं विनियोग 🌹
       
ॐ मानस्तोकेति मंत्रस्य परमेष्ठी ऋषि: एक रुद्रो देवता जगती छन्दः शिखा बंधने विनियोगः ।

🌹 शिखा बांधने का मंत्र🌹

 ॐ मानस्तोके तनये मान आयुषि मानो गोषु मानो  अश्वेषुरीरिष : । मनोवीरान्नरुद्रभामिनोव्वधीर्ह विष्ष्मंत: सदमित्वा हवामहे ।।। 
 इस प्रकार हम आज संकल्प व भस्म धारण और शिखा बांधने का मंत्र तक का क्रम करेंगे ।

 (3) तीसरा पार्ट 

🙏🌹विनियोग 🌹🙏

     ॐ ऋतं च सत्यं चेत्यस्य अघमर्षण ऋषि: भाववृतो देवता अनुष्टुप्छन्दः आचमने विनियोग: । 

     नीचे लिखे मंत्र से तीन बार मुख में आचमन कर ले । आचमन का तरीका पहले बताया हुआ है वैसे ही करना है ।

  ॐ ऋतं च सत्यं चाभिद्धात्तपसोध्यजायत । ततो रात्र (त् र भी आधा है यहाँ ) यजायत: तत: समुद्रो£अर्णव: । 
समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो£अजायत । अहोरात्राणि विदधद् विश्वस्य मिषतो वशी । सूर्याचंद्रमसौ धाता यथापूर्वम् अकल्पयत् ।। दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः ।।

     इस आचमन के बाद दाहिने ( राईट ) हाथ में जल लेकर बाएं हाथ से ढक कर ॐ के साथ 3 बार गायत्री मंत्र पढ़कर अपनी रक्षा के लिए अपने हाथ में लिए हुए जल को सिर पर से घुमा कर तांबड़ी में छोड़ देवे ।  

🙏🌹 प्राणायाम का     विनियोग 🌹🙏

 ॐ कारस्य ब्रह्मा ऋषि: गायत्री छंद: अग्निर्देवता शुक्लो वर्ण: सर्व कर्मारम्भे विनियोगः । 1।
ॐ सप्त व्याहृतीनां विश्वामित्र जमदग्नि भारद्वाज गौतम अत्रि वशिष्ठ कश्यपा ऋषयो गायत्र्यु ष्णिक् अनुष्टुप् बृहती पंक्ति त्रिष्टुब् जगत्यश् छंदास्यग्नि वाय्वादित्य बृहस्पति वरुणेंद्र विश्वेदेवा देवता अनादिष्ट प्रायश्चित्ते प्राणायामे विनियोग: ।। 2।।
ॐ गायत्र्या विश्वामित्र ऋषिर्गायत्री छंदः सविता देवता  £ग्निर्मुखमुपनयने प्राणायामे विनियोगः ।।3।। 
ॐ शिरसः प्रजापति ऋषिर्यजुश्छंदों ब्रह्माग्नि र्वायु सूर्या देवता: प्राणायामे विनियोगः ।।4।। 
  
🙏 प्राणायाम विधि 🙏

अब इस क्रिया को सावधानी से व गौर से पहले समझना है फिर करना है । नीचे लिखे मंत्र को पहले याद करले पूरा अभी याद नहीं हो सके तो देख कर आंख खुली रख कर पढ़ते जाए और उस क्रिया को करते जाए अभ्यास धीरे धीरे बढ़ेगा ।
 दाहिने (राईट ) के अंगूठे से दाहिने नाक वाले छिद्र को दबाए बाएं यानि लेफ्ट नाक के छिद्र से सांस खींचते रहे साथ में मंत्र बोलते रहे ।  फिर दाहिने राईट हाथ की बीच की दोनों अंगुलियों से नाक को दबाए रखे व अंगूठे से पहले दबा हुआ है इस प्रकार सांस को रोक कर रखे । और 3 बार नहीं तो 1 बार इस पूरे मंत्र को मन ही मन बोलते रहे । फिर उसी मंत्र को पढ़ते हुए अंगूठा हटा कर दाहिना राइट वाला नाक खोल ले व लेफ्ट बायां वाला दबा कर धीरे धीरे सांस बाहर छोड़ देवे । यह तीनों क्रियाएं पूरक,  कुम्भक व रेचक प्राणायाम की होती है । ध्यान रखना है कि प्राणायाम के समय सांस लेते समय मुंह बंद रहना चाहिए । इस प्राणायाम को 3 बार सीधा उलटा वापस सीधा करने से बहुत लाभकारी रहता है पहले एक बार ही करें फिर आगे बढ़ा सकते है । 

🌹 प्राणायाम मंत्र🌹

 ॐ भू: ॐ भुव: ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यं ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात् ॐ आपो ज्योती रसो£मृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ।। 


(4) 
आज संध्या का चतुर्थ दिन क्रम बता रहा हूँ आप सभी को उम्मीद है कि आपने 3 दिन तक कि क्रिया को ध्यान पूर्वक पढ़ा होगा उसको बोलने का अभ्यास किया होगा । कल हम सभी ने प्राणायाम तक कि क्रिया का वर्णन पढ़ा और जाना आज हम उससे आगे की क्रिया के बारे में जानते है क्या करना है आगे हम सब को संध्या में । तो आगे चलते है प्राणायाम से अब यहाँ पर एक बात ध्यान रखना है कि हर संध्या यहां तक एक जैसी है उसके बाद दिन का आचमन अलग है मध्याह्न का आचमन अलग है औऱ सायं का आचमन अलग है जिस समय की संध्या कर रहे है उस समय का आचमन आपको करना होगा । 
🌹 विनियोग प्रातः संध्या 🌹
 नीचे लिखे मंत्र को पढ़ कर आचमनी से जल लेकर तांबड़ी में विनियोग का जल छोड़ देवे 
  
 ॐ सूर्यश्चमेति ब्रह्मा ऋषि:  अनुष्टुप्छन्दः सूर्यो देवता अपामुप स्पर्शने विनियोगः । 

 प्रातः संध्या के आचमन का मंत्र 
  नीचे लिखे मंत्र से तीन बार आचमन  करें । 

      ॐ सूर्यश्च मा मन्युश्च मन्यु पतयश्च मन्यु कृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्तां । यद्रात्र्या पापमकार्षम् मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना रात्रिस्तदवलुम्पतु । यत्किञ्च दुरितं मयि इदम् अहम् आपो$मृतयौनो सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा ।।
  अब अगर आप दोपहर की संध्या कर रहे है तो प्रातः संध्या की जगह मध्याह्न संध्या का आचमन करना है । बस इतना ही परिवर्तन करना है जहाँ परिवर्तन करना है वहाँ पर सबको बता दिया जाएगा उसी जगह पर । 
मध्यान्ह संध्या का आचमन वैसे ही करना है जैसे प्रातः का किया है । नीचे लिखे मंत्र को पढ़कर विनियोग का जल तांबड़ी में छोड़ देवे । 

      ॐ आपः पुनन्त्विति ब्रह्मा ऋषिर्गायत्री छन्दः आपो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः । 
 मध्याह्न संध्या का आचमन 
    ॐ आपः पुनन्तु पृथिवीं पृथ्वी पूता पुनातु माम् । पुनन्तु  ब्रह्मणस्पतिर्ब्रह्मपूता पुनातु माम् । यदुच्छिष्टमभोजयम् च यद्वा दुश्चरितम् मम । सर्वं पुनन्तु मामापो$सतां च प्रतिग्रह गूँ स्वाहा ।।
सायं संध्या का आचमन 
  नीचे लिखे मंत्र को पढ़ कर सायं संध्या करते समय आचमनी में जल भर कर छोड़ देवे ।

ॐ अग्निश्च मेति रुद्र ऋषि: प्रकृतिश्छंदों$ग्निर्देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः ।

 सायं संध्या का आचमन

  ॐ अग्निश्च मा मन्युश्च मन्यु पतयश्च मन्यु कृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्तां । यदह्ना पापमकार्षम् मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना अहस्तदवलुम्पतु । यत्किञ्च दुरितं मयि इदम् अहम् आपो$मृतयौनो सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा।।
 ये तीनो आचमन अलग अलग समय के है आपको जिस समय संध्या कर रहे है उसी समय का आचमन करना है । 
इसके बाद में मार्जन करना है नीचे लिखे मंत्र को पढ़ कर विनियोग के जल को तांबड़ी में छोड़ना है ।  
 
 🌹मार्जन का विनियोग 🌹

    ॐ आपो हिष्ठेत्यादि त्र्य्रचस्य सिंधु द्वीप ऋषिर्गायत्री  छन्दः आपो देवता मार्जने विनियोगः ।

🌹 मार्जन का मंत्र 🌹

अपने बाएं लेफ्ट हाथ के अंदर जल लेकर दाहिने राईट हाथ की बीच की अंगुलियों से नीचे लिखे 9 मंत्रों को बारी बारी पढ़ते हुए 1 से लेकर 7 मंत्र तक तो अंगुलियों से सिर पर , 8 वें मंत्र से पृथ्वी पर छींटा देना है  9वें मंत्र से वापस सिर पर जल का छींटा देना है इसी क्रिया को मार्जन कहते है । 

(1) ॐ आपो हिष्ठा मयो भुवः।
(2) ॐ ता न ऊर्जे दधातन ।
(3) ॐ महेरणाय चक्षसे । 
(4) ॐ यो वः शिवतमो रसः ।
(5) ॐ तस्य भाजयतेह नः ।
(6) ॐ उशतीरिव मातरः ।
(7) ॐ तस्या अरं गमाम वः ।
(8) ॐ यस्य क्षयाय जिन्वथ ।
(9) ॐ आपो जनयथा च नः ।

 इन 9 मंत्रों से मार्जन करना है जैसे ऊपर बताया गया है वैसे ही करना है । 
इसके बाद नीचे दिए गए मंत्र को पढ़कर आचमनी से विनियोग का जल छोड़ देवे । 
       
 🌹विनियोग 🌹

ॐ द्रुपदादिवेत्यस्य कोकिलो राजपुत्र ऋषिरनुष्टुप्छंदः आपो देवता: शिरसे विनियोगः ।

बाएं लेफ्ट हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से ढक ले फिर नीचे  लिखे मंत्र को तीन बार या एक बार पढ़ कर अपने सिर पर छिड़क लेवे । 
              मंत्र 
 ॐ द्रुपदा दिव मुमुचानः स्विन्न: स्नातो मलादिव पूतं पवित्रेणेवाज्य माप: शुन्धन्तु मैनस: ।।

 (5) 

🙏🌹विनियोग 🌹🙏

     ॐ  अघमर्षणसूक्तस्याघमर्षण ऋषि: भाववृतो देवता अनुष्टुप्छन्द अघमर्षणे विनियोग: । 

     अब दाहिने राईट हाथ में जल लेकर नासिका के आगे जल को रखे , बाएं हाथ के अंगूठे से बाएं लेफ्ट नाक को दबा कर दाहिने राईट नाक से श्वास खींचते हुए नीचे लिखे मंत्र को पढ़ कर बाएं लेफ्ट हाथ ले नीचे से जल फैंक देवे । फिर दाहिने राईट नाक को दबा कर बाएं लेफ्ट नाक से श्वास छोड़े । 

🌹 अघमर्षण मंत्र 🌹

  *ॐ  ऋतं च सत्यं चाभिद्धात्तपसोध्यजायत । ततो रात्र (त् र भी आधा है यहाँ ) यजायत: तत: समुद्रो£अर्णव: । समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो£अजायत । अहोरात्राणि विदधद् विश्वस्य मिषतो वशी । सूर्याचंद्रमसौ धाता यथापूर्वम् अकल्पयत् ।। दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः ।। 

   🌹आचमन विनियोग🌹

   ॐ अन्तश्चरसीति तिरश्चीन ऋषिरनुष्टुपछन्दः आपो देवता अपामुप स्पर्शने विनियोगः ।
 
 🌹आचमन मंत्र 🌹

       नीचे लिखे मंत्र से तीन बार आचमन करें । 

      ॐ अन्तश्चरसि भूतेषु गुहायां विश्वतोमुखः । त्वं यज्ञस्त्वं वषट्कार आपो ज्योती रसो$ मृतं ।।

                                                                            भाग छ :        

आज हम उपस्थान करने के पश्चात सबसे पहले आसन पर बैठ कर अंग न्यास करेंगे । अंगन्यास की क्रिया साथ में बता रहा हूँ कैसे करना है । 

 (1) ॐ हृदयाय नमः ।। 

राईट दाहिने हाथ की पांचों अंगुलियों से हृदय स्पर्श करें ।

 (2) ॐ भू: शिरसे स्वाहा:

मस्तक को अंगुलियों से स्पर्श करें । 

 (3) ॐ भुवः शिखायै वषट् । 

अपनी शिखा को अंगूठे से स्पर्श करें । 
 
(4) ॐ स्व: कवचाय हुम् । 

दाहिने हाथ की सबसे छोटी अंगुली से लेफ्ट बाएं की भुजा को व बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली से दाहिनी भुजा को स्पर्श करना है । 
 (5) ॐ भुर्भुवः स्व: नेत्रात्रयाय  वौषट् । 

अपनी अंगूठे के पास वाली अंगुली तर्जनी को व अनामिका जिससे टीका लगाते है भगवान को उससे दोनों आंखों को व अपने अंगूठे को दोनों नेत्रों के मध्य भाग को स्पर्श करना है । 
 
(6) ॐ भूर्भवः स्व: अस्त्राय फट् । 

दाहिने हाथ की अंगुलियों से चारों ओर सिर के ऊपर से घुमाते हुए चुटकी बजाते हुए अपने बाएं हाथ की हथेली पर अंगूठे के पास वाली तर्जनी व सबसे बड़ी वाली मध्यमा अंगुली से ताली बजाये । 
इस प्रकार अंगन्यास करे फिर आगे बढ़े । 
अब गायत्री मंत्र जप करने के लिए विनियोग छोड़ना है पहले जैसे ही । 

ॐ कारस्य ब्रह्म ऋषीर्गायत्री छंदः अग्निर्देवता शुक्लो वर्णो जपे विनियोगः ।
ॐ त्रिव्याहृतिनां प्रजापतिर्ऋषि: गायत्र्युषणिक् अनुष्टुभश्चछंदास्यग्नि वाय्यवादित्य देवता: जपे विनियोगः ।।
ॐ गायत्र्या विश्वामित्र ऋषिर्गायत्री छंदः सविता देवता जपे विनियोगः ।

 🌹प्रातः काल का ध्यान🌹 

ॐ गायत्रीं त्र्यक्षरां बालां साक्षसूत्र कमण्डलूम्  ।
रक्तवस्त्रां चतुर्वक्त्राम्
हंसवाहन संस्थितां ।1।
ब्रह्मणीम् ब्रह्मदैवत्यां 
ब्रह्मलोक निवासिनीम् ।
श्री ऋग्वेद कृतोत्संगा 
सर्व देव नमस्कृताम्  ।।2 ।।
आवहयाम्यहं देवीमायान्ती सूर्यमंडलात् ।
आगच्छ वरदे देवि ! 
त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनी ।। 3।।
गायत्रि ! छन्दसां मात र्ब्रह्मयोनिर्नमो$स्तुते ।।4।।

इसके बाद में गायत्री माता का आवाहन करें । 
    आवाहन का विनियोग 
नीचे लिखे मंत्र से गायत्री माता के आवाहन का विनियोग छोड़ देवे ।

ॐ तेजो$सीति देवा ऋषयो गायत्री छन्दः शुक्रं देवता गायत्र्यावाहने विनियोगः ।

नीचे लिखे मंत्र से हाथ जोड़ कर गायत्री माता का आवाहन करें ।

 ॐ तेजो$सि शुक्रमस्य मृतमसि धामनासि प्रियं देवाना मना धृष्टँ देवयजनमसि ।। 

  उपस्थान का विनियोगः नीचे लिखे मंत्र से विनियोग छोड़ देवे । 

ॐ तुरीयस्य विमल ऋषि: परमात्मा देवता गायत्री छन्दः गायत्र्युपस्थाने विनियोगः ।

 🌹उपस्थान का मंत्र 🌹 

 ॐ गायत्र्यस्येक पदी द्विपदी त्रिपदी चतुष्पद्यपदसि । नहि पद्यसे नमस्ते तुरियाय दर्शताय पदाय दर्शताय पदाय परोरजसे सावदो मा प्रापत्  ।। 

 🌹🌹प्रार्थना🌹🌹 

ॐ अहो देवि ! महादेवि! सन्ध्ये ! विद्ये ! सरस्वति ! अजरे अमरे ! चैव ब्रह्मयोनिर्नमो$स्तुते 

आप संध्या करते है तो आपको गायत्री शाप विमोचन भी करना होगा क्योंकि गायत्री मंत्र को शाप मिला हुआ है । 

   ब्रह्मशाप विमोचन 

ॐ अस्य श्री ब्रह्मशाप विमोचन मंत्रस्य ब्रह्मा:  ऋषि:  भुक्ति मुक्ति प्रदा ब्रह्मशाप विमोचनी  गायत्री शक्तिर्देवता गायत्री छंद: ब्रह्मशाप विमोचने विनियोग:

  🌹शापविमोचन मंत्र 🌹

ॐ गायत्रीं ब्रह्मेत्यु पासीत यद्रूपं ब्रह्मविदो विदुः । तां पश्यन्ति धीराः सुमनसा वाचामग्रत: ।। ॐ वेदांतनाथाय विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ।। ॐ देवि गायत्रि त्वं ! ब्रह्म शापाद्विमुक्ता भव ।।

इस मंत्र को बोल कर आचमनी तांबड़ी में छोड़ देवे । 

 🌹वशिष्ठशाप विमोचन🌹

पहले विनियोग छोड़ दे 

ॐ अस्य श्री वशिष्ठ शाप विमोचन मंत्रस्य निग्रहानुग्रहकर्त्ता वशिष्ठ ऋषि: वशिष्ठानुगृहिता गायत्री शक्ति र्देवता विश्वोद्भव गायत्री छंदः वशिष्ठ शाप विमोचनार्थ जपे विनियोगः ।।

 वशिष्ठशाप विमोचन मंत्र 

ॐ  सो$हमर्कमयं ज्योतिरात्म ज्योतिरहं शिवः आत्म ज्योतिरहं शुक्र: सर्वज्योतीरसो$स्म्यहं । योनि मुद्रा दिखा कर 3 बार गायत्री मंत्र जपे । ॐ देवि! त्वं ! वशिष्ठ शापाद्वि मुक्ता भव ।।

यह मंत्र बोल कर आचमनी से जल लेकर तामड़ी में छोड़ देवे ।

🌹विश्वामित्र शाप विमोचन 

ॐ अस्य श्री विश्वामित्र शाप विमोचन मंत्रस्य नूतन सृष्टिकर्त्ता विश्वामित्र ऋषि: विश्वामित्रानुगृहिता गायत्री शक्ति र्देवता वाग्देहा गायत्री छन्दः विश्वामित्र शाप विमोचनार्थं जपे विनियोगः ।

 विश्वामित्रशापविमोचन मंत्र 

ॐ गायत्री भजाम्यग्निमुखीं विश्वगर्भा यदुद्भवा:  । देवाश्चक्रिरे विश्व सृष्टिं तां कल्याणी मिष्टकरीं प्रपध्ये । यं मुखाग्नि: सृतो$खिलवेद गर्भ: । शाप युक्ता तु गायत्री सफला न कदाचन । शापादुत्तरिता सा तु भुक्ति मुक्ति फल प्रदा ।। ॐ देवि गायत्रि  !  त्वं विश्वामित्र शापाद्विमुक्ता भव ।। 

यह मंत्र बोल कर आचमन छोड़ देवे ।


कल हमने शाप विनोचन तक की क्रिया का वर्णन किया था आज सातवें दिन का क्रम कैसे करना है वह आपको बताया जाएगा । 
       शाप विमोचन के बाद में जप शुरू करने से पहले लोग गायत्री हृदय का पाठ करते है फिर जप से पूर्व 24 मुद्राएं माता गायत्री के सामने या मन मे ध्यान करते हुए प्रदर्शित की जाती है । 
24 मुद्राओं का मंत्र याद करने से बाद में सुविधा रहती है । इसका मंत्र नीचे लिखा गया है । 

ॐ सुमुखं सम्पुटम् चैव विततं विस्तृतं तथा । 
द्विमुखं त्रिमुखं चैव चतुष्पंच मुखं तथा ।।  1।।
षण्मुखा$धोमुखं चैव व्यापकांजलिकं तथा ।
शकटम् यमपाशं च ग्रथितं  चोन्मुखोन्मुखम् ।।2।।
प्रलम्बम् मुष्टिकं चैव मत्स्य: कुर्मोवराहकम् ।
सिंहाक्रान्ताम् महाक्रांतम् 
मुद्गरं पल्लवं तथा ।।3।।
एता मुद्रा न जानाति गायत्री निष्फला भवेत् ।
एता मुद्रा तु जानाति गायत्री सफला भवेत् ।। 4 ।।

(1) सुमुखं 

दोनों हाथ की अंगुलियों को मोड़ कर परस्पर मिलावे ।

(2) सम्पुटम्

दोनों हाथ को फुला कर मिलावे । 

(3) विततं 

दोनों हाथों की हथेलियाँ परस्पर सामने करें ।

(4) विस्तृतम् 

दोनों हाथों की अंगुलियों को खोल कर दोनों हथेलियों को थोड़ा दूर करे । 

(5) द्विमुखं 

दोनों हाथों की सबसे छोटी व अनामिका ( तिलक करने वाली ) दोनों अंगुलियों को आपस में मिलाएं ।। 

(6) त्रिमुखं 

पहले वाली दोनों अंगुलियों के साथ सबसे बड़ी वाली अंगुली भी साथ में मिला देवे  । 

(7) चतुर्मुखं

पहले वाली तीनों अंगुलियों के साथ अंगूठे के पास वाली अंगुली भी मिला देवे ।

(8) पञ्चमुखं 

इन सब अंगुलियों के साथ अंगूठा भी मिला देवे । 

(9) षण्मुखं 

पांचों अंगुलियों को जोड़े हुए अपनी सबसे छोटी वाली अंगुलियों को अलग कर लेवे । 

(10) अधोमुखम्

उल्टे हाथों की अंगुलियों को मोड़े व मिला कर नीचे की ओर करें । 

(11) व्यापकांजलिकम् 

वैसे ही मिले हुए हाथ को शरीर की ओर घुमा कर सीधा करें । 

(12)  शकटम्

दोनों हाथ को उलटा कर अंगूठे से अंगूठा मिला कर तर्जनियों (अंगूठे के पास वाली ) को सीधा रखते हुए मुट्ठी बांधे ।
(13) यमपाशम् 

तर्जनी से तर्जनी (अंगूठे के पास वाली ) बांध कर दोनों मुट्ठियों को बांधे ।।

(14) ग्रथितं 

दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में परस्पर गूंथे । 

(15) उन्मुखोन्मुखम् 

हाथों की पांचों अंगुलियों को आपस में मिला कर पहले दाहिना हाथ की अंगुलियों को बाएं हाथ की अंगुलियों पर फिर वापस बाएं हाथ की अंगुलियों को दाहिने हाथ की अंगुलियों पर बाएं हाथ की अंगुलियों को रखे । 

(16) प्रलंबम् 

अंगुलियों को कुछ मोड़ कर दोनों हाथों को उलटा कर नीचे की ओर करें । 

(17) मुष्टिकम् 

दोनों अंगूठों को ऊपर रखते हुए दोनों मुट्ठियों को बांध कर मिलावे ।

(18) मत्स्य: 

दाहिने राईट हथेली की पीठ पर बाएं लेफ्ट हथेली को रख कर दोनों तरफ के अंगूठे को हिलाये । 

(19) कूर्म 

बाएं हाथ को सीधा रख कर उसकी मध्यमा अंगुली(सबसे बड़ी), अनामिका (तिलक लगाने वाली ) व सबसे छोटी कनिष्ठिका को मोड़ दाहिने हाथ को उलटा करके उस हाथ की मध्यमा व अनामिका अंगुलियों को बाएं हाथ की तीनो अंगुलियों के नीचे रख कर बाएं हाथ की तर्जनी अंगूठे के पास वाली पर दाहिने हाथ की सबसे छोटी अंगुली को और बाएं हाथ के अंगूठे पर दाहिनी तर्जनी अंगुली रखे । 

(20) वराहकम् 

दाहिनी तर्जनी को बाएं अंगूठे से मिला दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में बांध लेवे । 

(21) सिंहाक्रांतम् 

दोनों हाथों को कानों के समीप करें ।

(22) महाक्रांतम् 

दोनों हाथों की अंगुलियों को कानों के पास करें । 

(23) मुद्गरम् 

मुट्ठी बांध कर दाहिने हाथ की कुहनी को बायीं हथेली पर रखे ।

(24) पल्लवम् 


दाहिने हाथ की अंगुलियों को मुख के सामने हिलावे । 
इस प्रकार 24 मुद्राओं का प्रदर्शन करे ।


24 मुद्राओं को करके हाथ जोड़ कर नीचे लिखे गायत्री माता का ध्यान करें । 

🌹 गायत्री का ध्यान 🌹

 *मुक्ता विद्रुमहेम नीलधवलच्छायैर्मुखै स्त्रीक्षणेर्युक्तामिन्दु निबद्ध रत्न मुकुटां त्तत्वार्थ वर्णात्मिकाम् ।। 
 गायत्रीं वरदा भयां कुशकुशां शूलं कपालं गुणम् , शंखं चक्रमथारविन्द युगलं हस्तैर्वहंतीं भजे ।।*

      इसके बाद में  माला का सुमेरु के पास जल का प्रक्षालन करके दाहिने हाथ की मध्यमा सबसे बड़ी अंगुली व अनामिका तिलक लगाने वाली अंगुली के बीच धारण करते हुए गोमुखी में अंगूठे से सरकाते हुए गायत्री मंत्र का जप करें । सुमेरु का उल्लंघन कभी नहीं करना चाहिए उसको वापस घुमा कर जप शुरू करें । 

 🌹गायत्री मंत्र 🌹

 ॐ भर्भुवः स्व : तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ।।

जब आप 1 या 11, 21, 31, 51 या अपनी सुविधानुसार जितनी  करना चाहे कर ले उसके बाद माला को  दोनों आंखों को छुआ कर माला की प्रार्थना करें ।

ॐ महामाये ! महामाले सर्वशक्ति स्वरूपिणी ।।
चतुर्वगस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ।।
अविघ्नं कुरु माले ! त्वं गृह्नामी दक्षिणे करे ।। जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये ।।
इसके बाद में जप के बाद की 8 मुद्राएं करें । 
ॐ सुरभिर्ज्ञान वैराग्यं योनि: शंखों$थ पंकजं । 
लिंगं निर्वाणकं चैव जपान्ते अष्टो प्रदर्शयेत्  ।। 

(1) सुरभि 

दोनों हाथ की अंगुलियां गूंथ कर लेफ्ट बाएं हाथ की तर्जनी से दाहिने हाथ की मध्यमा , मध्यमा से तर्जनी, अनामिका से कनिष्ठिका और कनिष्ठिका से अनामिका मिलाए । 

(2) ज्ञानम् 

दाहिने हाथ की तर्जनी से अंगूठा मिलाकर हृदय में व बाएं हाथ की तर्जनी व अंगूठा मिला कर बाएं हाथ को बाएं घुटने पर रखे । 

(3) वैराग्यं

दोनों तर्जनियों से अंगूठे मिला कर घुटनों पर सीधे रखे । 

(4)   योनि:

दोनों हाथ की मध्यमाओं के नीचे से बायीं तर्जनी के ऊपर दाहिनी अनामिका ओर दाहिनी तर्जनी पर बायीं अनामिका रख कर दोनों तर्जनियों से बांध दोनों मध्यमाओं को ऊपर रखें । 

(5)      शंख:

बायें अंगूठे को दाहिनी मुट्ठी में बांध कर दाहिने अंगूठे से बायीं अंगुलियों को मिलावे । 

(6)   पंकजम् 

दोनों हाथों के अंगूठे तथा अंगुलियों को मिला कर ऊपर की ओर करे ।  

(7)   लिंगं 

दोनों हथेलियों को आपस में मिला कर अनामिका व कनिष्ठिका को ऊपर की ओर करे व हाथ को जलहरी की तरह रखे यही लिंग मुद्रा भी है और एक तरीका ओर है दाहिने अंगूठे को सीधा रखते हुए दोनों हाथों की अंगुलियों को गूंथ कर बायां अंगूठा दाहिने अंगूठे की जड़ के ऊपर रखे । 

(8)     निर्वाणम् 

उलटे बाएं हाथ पर उलटा दाहिना हाथ रख कर आपस में अंगुलियों को गूंथ कर दोनों हाथों को अपनी ओर घुमा कर दोनों तर्जनियों को सीधा कान के समीप करे ।  इस प्रकार आठ मुद्राओं का प्रदर्शन करे । 
इसके पश्चात आचमनी में जल भर कर नीचे लिखा मंत्र पढ़ कर देवी के वाम हाथ में जप अर्पण की भावना से जल को छोड़ देवे । 
 अनेन अष्टोत्तर शत संख्याकेन प्रातः संध्यांगभूतेन गायत्री जपाख्येन कर्मणा भगवान् ब्रह्म स्वरूपी सविता देवता प्रीयताम् ।।
जप के बाद कवच का पाठ करना चाहिए उसके बाद में प्रातः संध्या में गायत्री तर्पण करना चाहिए । 

उसके बाद में संध्या का विसर्जन जरूर कर देना चाहिए । 

🌹विसर्जन विनियोगः🌹

ॐ उत्तरे शिखरे इत्यस्य कश्यप ऋषि: संध्या देवता अनुष्टुप्छन्दः संध्या विसर्जने विनियोगः ।। 

 🌹विसर्जन मंत्र🌹 

हाथ जोड़ कर मंत्र पढ़े 

 ॐ उत्तरे शिखरे देवि ! भुम्यां पर्वतमूर्धनि । ब्राह्मणेभ्यो$नुज्ञाता गच्छ देवि ! यथा सुखम् ।।

एक आचमनी लेकर जल को आसन के नीचे छोड़कर उस  जल को मस्तक पर लगा लेवे ।
फिर ॐ तत्सत् ब्रह्मार्पणमस्तु  बोल कर पंचपात्र का जल तांबड़ी में छोड़ देवे या एक आचमनी भी छोड़ सकते है । संध्या के जल को विसर्जन कर दे कभी भी पैर ना लगे ऐसी जगह पर विसर्जन करना है ।



विशेष आभार पंडित ज्योतिष आचार्य जीतेन्द्र कुमार 

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  1. बहुत ही सराहनीय कार्य है आभार आपका सच में दिल से

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